हे दुख भंजन। मारुति नंदन।।
जय श्री राम। जय हनुमान।।
संकट की घड़ी मे एक ही नाम याद आता है। वो है कष्ट निवारक सबके दुख हर्ता परम पूज्य श्री राम भक्त श्री श्री श्री १००८ श्री हनुमान जी।। जैसा कि हम सब जानते है कि इनके कई नाम है जिसमे से एक है संकट मोचन।। हनुमान जी के विकट और विशाल रूप को आपने रामायण मे भली भाँति देखा होगा। और आप सभी इनके बल और विद्या से भी परिचित होंगे। माना जाता है कि जब इंसान चारो तरफ से संकट से घिर जाता है और उसे अपने इन संकटो का हरण करने का कोई भी मार्ग नजर नही आता है तब श्री बजरंग बली के नाम मात्र के उच्चारण से हमे कितनी भी विषम परिस्तिथि हो उससे लड़ने और बाहर निकलने का जेसे कोई अनोखा सा बल मिल गया हो ऐसा प्रतीत होता है।
चाहे भूत पिशाच हो या कोई भी काला जादू या फिर किसी भी प्रकार का कष्ट हो। श्री हनुमान जी की हनुमान चालीसा के स्मरण मात्र से सारे दुखो और कष्टो का हरण हो जाता है।
मंगलवार और शनिवार इनके प्रमुख दिनों मे माने जाते है और ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन और श्रद्धा से इन दिनों भगवान् श्री बजरंग बली का स्मरण करता है अथवा ५ मंगलवार या शनिवार को श्री हनुमान जी के चरणों मे घी का दीपक जलाने मात्र से और श्री हनुमान जी के नाम से इन दिनों उपवास रखने से बजरंग बली सारी मनोकामनाये पूरी करते है।
श्री हनुमान जी के प्रमुख प्रसाद के रूप मे इन्हे पान, सुपारी, नारियल, एवं सिंदूर का चढ़ावा बहुत ही शुभ माना जाता है।
आज हम आपके लिए इस पेज पर एक ऐसी प्रस्तुति लेकर आये है। माना जाता है कि हनुमान भक्तों के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद इस संकटमोचन हनुमानाष्टक का भी पाठ करना चाहिए।
संकटमोचन हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्ष लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह,
संकट काहु सों जात न टारो॥
देवन आनि करी बिनती तब,
छांडि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब,
चाहिय कौन बिचार बिचारो॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाए इहां पगु धारो॥
हरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
रावन त्रास दई सिय को सब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो॥
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो॥
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
रावन जुद्ध अजान कियो तब,
नाग की फांस सबे सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो॥
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।
काज किये बड देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो॥
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो॥२।।दोहा
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥
बोलो सियावर रामचंद्र की जय।
पवनसुत हनुमान की जय।।
बजरंगबली की जय।।।
हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें-
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